श्रीकृष्ण-रुक्मणी के विवाह प्रसंग पर श्रद्धालुओं ने पुष्पवर्षा की

श्रीकृष्ण-रुक्मणी के विवाह प्रसंग पर श्रद्धालुओं ने पुष्पवर्षा की


भितरवार। विकासखंड के ग्राम सुखना खिरिया में चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के छठे दिन शनिवार को भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मणी विवाह प्रसंग का वर्णन किया गया। इसमें पंडाल में मौजूद श्रद्धालुओं ने नाच-गाकर खुशी का इजहार किया और पुष्पवर्षा की। इसके साथ ही कथा में रास पंचअध्याय का वर्णन किया गया।


कथा वाचक संजय कृष्ण ठाकुर ने कहा कि महारास में पांच अध्याय हैं। पंच गीत भागवत के पंचप्राण हैं, जो भी ठाकुरजी के इन पांच गीतों को भाव से गाता है, वह भव पार हो जाता है। उन्हें वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती है। कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान, कंस वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना, कालयवन का वध, उद्धव गोपी संवाद, उद्धव द्वारा गोपियों को अपना गुरु बनाना, द्वारका की स्थापना एवं रुकमणी विवाह प्रसंग का संगीतमय भावपूर्ण पाठ किया गया। कथा के दौरान कथा व्यास ने कहा कि महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजा कर गोपियों का आह्वान किया और महारास लीला द्वारा ही जीवात्मा परमात्मा का ही मिलन हुआ। उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने 16 हजार कन्याओं से विवाह कर उनके साथ सुख में जीवन बिताया। भगवान श्रीकृष्ण रुक्मणी के विवाह की झांकी ने सभी को खूब आनंदित किया। कथा स्थल पर रुक्मणी विवाह के आयोजन ने श्रद्धालुओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। श्रीकृष्ण रुकमणी की वरमाला पर जमकर फूलों की बरसात हुई।


 

उन्होंने कथा के महत्व को बताते हुए कहा कि जो भक्त प्रेमी कृष्ण रुक्मणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं। उनकी वैवाहिक समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है। कथा श्रवण के द्वारा स्थानीय महिलाओं पर पांडवों के भाव अवतरित हुए। उन्होंने कहा कि जीव परमात्मा का अंश है। इस जीव के अंदर अपारशक्ति रहती है यदि कोई कमी रहती है वह मात्र संकल्प की होती है। संकल्प एवं कपट रहित होने से प्रभु से निश्चित रूप से पूरा करेंगे। उन्होंने महारास लीला, श्रीउद्धव चरित्र, श्रीकृष्ण मथुरा गमन और रुक्मणी विवाह महोत्सव प्रसंग पर का वर्णन किया। उन्होंने रुक्मणी विवाह महोत्सव प्रसंग पर व्याख्यान करते हुए कहा कि रुकमणी के भाई रुकमी ने उनका विवाह शिशुपाल से सुनिश्चित किया था। परंतु रुक्मणी ने संकल्प लिया था कि वह शिशुपाल से नहीं केवल गोपाल को पति के रूप में वरण करेंगी। शिशुपाल असत्य मार्गी है और द्वारकाधीश भगवान श्री कृष्ण सत्य मार्गी हैं, इसीलिए वह असत्य को नहीं सत्य को अपनाएगी। अंत में भगवान द्वारकाधीश ने रुक्मणी के संकल्प को पूर्ण किया और उन्हें पत्नी के रूप में प्रधान पटरानी का स्थान दिया।