निगम का कॉलम-टाउन हॉल

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हरीश चन्द्रा चश्मे के बॉक्स में लक्ष्‌मी


सरकारी महकमों में लक्ष्‌मीजी को हाथ लगाने पर हाथ लाल हो जाते हैं। इससे कुछ साहब लोगों के मन में डर बैठने लगा है। लेकिन भला लक्ष्‌मीजी से नफरत कौन करेगा। इसलिए लक्ष्‌मीजी के लिए नए-नए रास्ते खोजे जाते हैं। अपनी मुंसीपाल्टी में कुछ साहब लोगों ने लक्ष्‌मीजी के लिए ऐसे-ऐसे घर बना लिए हैं जिन्हें देखकर या सुनकर हर कोई दांतों तले अंगुली दबा लेता है। 'जन के कार्य' वाले विभाग के बड़े साहब ने ऐसा ही रास्ता ईजाद किया है। वे चश्मे की डिब्बी(बॉक्स) में लक्ष्‌मी जी रखवा लेते हैं। आप भी सुनकर हैरान होंगे। क्योंकि छोटी सी डिब्बी में लक्ष्‌मीजी कैसे समाएंगी। बात भी सच है। लेकिन साहब तो सबसे ज्यादा कीमती गांधी छाप लाल रंग वाली लक्ष्‌मीजी को ही पसंद करते हैं। छोटे से बॉक्स में 25 पन्नो समा जाते हैं और आंकड़ा 50 हो जाता है। देने वाले भी साहब की साहब की चतुराई का गुणगान करते नहीं थकते।


 

अंदर से सूखे, बाहर से गीले


शहर में डिवाइडर बनाए जा रहे हैं। मुंसीपाल्टी के मुखिया को डिवाइडरों के बीच पौधे लगाने का शौक नहीं है। जबकि पहले वाले साहब पेड़ पौधों के प्रेमी थे। उन्होंने शहर में जहां भी डिवाइडर बनवाए, सभी के बीच रंग बिरंगे और सुंदर पौधे लगवाए। वे पर्यावरण प्रेमी कहे जाते थे। डिवाइडरों के बीच लगे पौधे शहर की सुंदरता बढ़ाते हैं। लेकिन वर्तमान साहब को यह सब पसंद नहीं है। इसलिए उन्होंने जिन्सी नाला, चेतकपुरी रोड पर ठूठ से डिवाइडर बना दिए। क्योंकि साहब को गीला पसंद नही हैं। रोज-रोज पानी देने से भी राहत मिल जाएगी। हालांकि साहब का कहना है कि मानकों के तहत ही डिवाइडर बनाए हैं। लेकिन साहब मानकों के तहत क्या सभी काम करते हैं, यह चर्चा का विषय है। वे अंदर से सूखे और और बाहर से गीले हैं। जो कहेंगे वे करेंगे नहीं। जो करेंगे उसे उजागर नहीं करेंगे। सभी से राम राम, दुआ सलाम जरूर करते रहेंगे।


 

अपने ही पैर पर मार ली कुल्हाड़ी


गंदे पानी की समस्या उठाकर मंत्री पद तक पहुंचे ठाकुर साहब अब व्यथित हो गए हैं। अब उनकी अदने से अफसर भी नहीं सुन रहे। वे पैर तक पकड़ने लगे हैं। जनता की नजरों में ग्राफ तेजी से गिरा है। वे मंथन कर रहे हैं कि आखिर ये दिन कैसे आ गए। कुछ लोग अब उन्हें समझा रहे हैं कि जिन पर भरोसा किया और गैर कानूनी तरीके से मुंसीपाल्टी में लाकर 'अमृत' दे दिया वे ही अब लुटिया डुबाने का काम कर रहे हैं। पानी वाले राम की किसी से पटरी नहीं बैठती। वे अंतरराष्ट्रीय स्तर के ईमानदार हैं और उनकी नजर में बांकी सब चोर हैं। मंत्री जी को भरोसा था कि उनके सहारे नैया पार हो जाएगी, इसलिए उन्हें अपनी विधानसभा का मुखिया बना दिया। अब यही फैसला भारी पड़ने लगा है। निगम के मुखिया के खास चहेते होने के कारण मंत्री जी भी कुछ नहीं कर पा रहे।


जाने के दिन आए तो दिखा दी सख्ती


मुंसीपाल्टी के खजाने के मालिक को 3 साल से ज्यादा हो गए। उनका अब जाने का समय हो गया है। सरकार कब उन्हें दूसरी जगह भेज दे, यह कहा नहीं जा सकता। इसे देखते हुए वित्त वाले साहब ने थोड़ी सख्ती दिखाना शुरू कर दी है। जाते-जाते कुछ लोग ऐसा काम कर जाते हैं जिसे लंबे समय तक याद रखा जाए। इसलिए उन्होंने निगम खजाने को पूरी तरह खाली होने से बचाने की कोशिश शुरू कर दी है। किसी की गाड़ी छीनने तो किसी का चाय-नास्ता बंद करने की ठानी है। ठेके के कर्मचारियों के नाम पर घोटाला करने वालों के पर कतरने की तैयारी कर ली है। उनके इस काम में निगम प्रशासक सहयोग कर रहे हैं। वित्त के साहब की इस कैंची से कुछ परेशान भी होने लगे हैं।