मेहमान की तरह आते हैं सुख और दुखः मुनि विहर्ष सागर

ग्वालियर। सुख और दुख दोनों ही अस्थाई मेहमान है, जो कि समय -समय पर आते और चले जाते हैं। अगर मनुष्य के जीवन में सुख ही सुख रहें तो वह कुमार्ग पर चला जाएगा। सुख के कारण उसके जीवन में सुखों का महत्व ही खत्म हो जाएगा। इसी प्रकार अगर मनुष्य के जीवन में दुख ही दुख रहें तो भी जीवन नहीं चल पाएगा। इसलिए सुख और दुख दोनों महत्वपूर्ण हैं। दुख के होने से हमें सुख का अहसास होता है। जबकि सुख के होने से हमें दुख का पता चलता है। यह दोनों ही एक दूसरे के पूरक है। यह बात हरिशंकरपुरम में प्रवचन देते हुए कही। मुनिश्री ने कहा कि सामान्य दृष्टि से जब हम अच्छा पाने की सोचते हैं तो हमारी दृष्टि सांसारिक विषयों पर चली जाती है। जैसे अच्छा मकान, व्यवसाय, नौकरी, अच्छी परवरिश, अच्छा परिवार आदि। यह संसार तो दुखों का हार है। क्योंकि व्यक्ति सुख से रह सके यह संभव नहीं है। व्यक्ति को अपने परिश्रम का निष्कर्ष निकालना चाहिए। दुख से सुख में जाने के प्रयास की वजह दुर्गुणों से सद्गुणों की ओर जाने, बुराई से अच्छाई की ओर जाने, पाप से पुण्य की ओर जाने का प्रयत्न करना चाहिए। दुखों से सुख की जाने की सफलता मिले यह पक्का नहीं है। लेकिन दुर्गुणों से सद्गुणों में आ गए तो फिर आपकों कोई दुख नहीं होगा।


 

दुर्गुणों की वजह से है जीवन में दुख


मुनिश्री ने कहा कि यदि जीवन में दुख है तो वह स्वयं के दुर्गुणों के कारण है। दुर्गुणों में अभिमान, क्रोध, छल , कपट, स्वार्थ, लालच , मोह, माया आदि आते हैं। व्यक्ति यदि क्रोध से क्षमा की ओर चला जाए तो वह अनंत असीम आनंद की प्राप्ति कर सकता है।


दो प्रकार के होते हैं सुख


मनुष्य के जीवन में दो प्रकार के सुख होते हैं, एक साधना से प्राप्त किया गया सुख। दूसरा साधनों से प्राप्त किया गया सुख। साधना से प्राप्त किया गया सुख असीम और अनंत रहता है। लेकिन साधनों से प्राप्त किया गया सुख क्षणिक मात्र रहता है।