कु छ कारणों से हो गए ऐसे लाचार.

कु छ कारणों से हो गए ऐसे लाचार


दतिया। साहित्यकार वीरेन्द्र त्रिपाठी के निवास रामनगर कॉलोनी में शिक्षा त्रिपाठी समाज सुधार समिति दतिया के द्वारा पूज्यनीय माताजी स्व. रामदुलारी त्रिपाठी की पुण्य स्मृति में 32वीं काव्य गोष्ठी का आयोजन कि या। गोष्ठी में मुख्य अतिथि जितेन्द्र गौतम मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। राजेन्द्र प्रसाद मुधुर विशिष्ट अतिथि रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. राजेन्द्र सिंह खेंगर के द्वारा की गई।


सर्वप्रथम अतिथियों द्वारा मां शारदेय जी का पूजन कि या। इसके पश्चात माताश्री रामदुलारी त्रिपाठी जी के चित्र पर माल्यार्पण कर पूजन कि या। सरस्वती वन्दना सुन्दरलाल श्रीवास्तव द्वारा प्रस्तुत की गई। तत्पश्चात अतिथियों एवं साहित्यकारों का माला पहनाकर एवं तिलक लगाकर वीरेन्द्र त्रिपाठी विकास द्वारा स्वागत वंदन कि या गया। डॉ. राज गोस्वामी ने कहा कि कु छ कारणों से हो गए लाचार ऐसे, वरना हम भी टनाटन थे आप जैसे। ज्योति बिरथरिया ने कहा चंद मंद होई गइले, गगनवा कें , देख कें सांबरी सुरतिया पहुनवां के । सुन्दरलाल श्रीवास्तव ने कहा उनके मन की हम का जाने वे का मन में ठाने। प्रमोद अश्क के द्वारा तर्क कु छ इस तरह उछाले हमने, हार के जिम्मे सभाले हमने। वहीं बालकृष्ण बाथम ने कहा बगरौ डरौ रंग धरती पै, आदि न अंत है आया वसंत है। वहीं राजेन्द्र सिंह खेंगर ने कहा जख्म कि सी के देने वालों दर्द जरा सहकर देखो, मीठा-मीठा खाने वालो कड़वा भी कु छ चखकर देखे। वीरेन्द्र त्रिपाठी विकास ने कहा सलामत तुम रखना जनम देने वाले, मिलेंगे जिन्दगी में नाग काले-काले। राजेन्द्र प्रसाद मधुर ने कहा वे मतलव की हम मुलाकातें नहीं करते, करते हैं अपना काम, बातें नहीं करते, न घमण्ड न गुमान न दिखावा कोई मधुर, बिन बुलाये कि सी की बारातें नहीं करते। रामस्वरुप साहू द्वारा भी बहुत सुन्दर गीत सुनाया गया। आनन्द भटनागर ने बसंत पर गद्य रूप में प्रकाश डाला, अंत में महेश चन्द्र लाक्षाकार के द्वारा आभार व्यक्त कि या गया।