अर्द्धनारीश्वर में दिखाया प्रकृति और पुरुष का मिलन, सखी ने कान्हा को बताई राधा की हालत
ग्वालियर । जब आप साहित्य का गहन रूप से अध्ययन करते हैं तो उसका असर आपके कार्य में भी परिलक्षित होता है। महान भरतनाट्यम नृत्यांगना रुकमणि देवी की कोरियोग्राफी में यह झलकता था। जब उन्होंने रामायण की कोरियोग्राफी की तो वाल्मिकी रामायण के साथ ही दक्षिण भारत, गुजरात आदि अधिकांश भाषाओं की रामायण का अध्ययन किया। इसके बाद जब उन्होंने कोरियोग्राफी की तो वह बेहद अलग थी। राम-रावण के युद्ध में उन्होंने चार अप्सराओं को युद्ध देखते दिखाया तो हनुमानजी के पहनावे को भी सामान्य से अलग दिखाया। पद्मभूषण रुकमणि देवी के साथ के अपने ऐसे ही अनुभव वाराणसी से आए उनके शिष्य रहे प्रेमचंद होंबल ने साझा किए। शनिवार को राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के भरनाट्यम विभाग ने जीवाजी विवि के गालव सभागार में गुरुदक्षिणा कार्यक्रम रखा।
कार्यक्रम में भरतनाट्यम विभाग की प्रमुख डॉ. गौरीप्रिया ने अपने शिष्यों के इस पारंपरिक नृत्य की प्रस्तुति देते हुए रुकमणि देवी को गुरुदक्षिणा दी। उन्होंने कुल पांच प्रस्तुतियां दीं जो सहज ही आंखों को आकर्षिक करने वाली थीं। एक-एक भाव भंगिमाएं स्पष्ट और मोहक थीं। वहीं नृत्य अपनी कहानी खुद कह रहा था। शुरुआत अलारिप्पु से हुई। यह भतरनाट्यम की पहली प्रस्तुति होती है जिसमें सभी देवताओं, गुरुजनों, दर्शकों से प्रस्तुति की शुरू करने की आज्ञा ली जाती है। इसके बाद देवी की स्तुति प्रस्तुत की गई। इसमें दिखाया गया कि मां लक्ष्मी ही काली है, दुर्गा है, सरस्तवी है। यह नृत्य बताती है कि मां एक ही है, बस परिस्थिति के साथ उसके रूप बदल जाते हैं। वहीं अर्द्धनारीश्वर में प्रकृति और पुरुष के सम्मेलन को दर्शाया। इसमें नंदि चोल्लुम भी सम्मिलित था। जिसमें नंदी मृदंग बजाकर अपने उत्साह को दिखाते हैं। वहीं अष्टपदी में राधा की सखी कान्हा के पास जाकर उन्हें विरह में व्याकुल राधा की स्थिति का वर्णन करती है।